क्या आपने कभी सोचा है कि एक गांव में हिंदू, मुस्लिम, ब्राह्मण, जाट सब एक ही नाम से जाने जाते होंगे?
Gao me sabhi logo ka ek hi naam hai
राजस्थान का ये गांव ऐसी ही एकता की मिसाल है। यहां हर व्यक्ति अपने नाम के साथ “ईनाणियां” सरनेम लगाता है।
ये कहानी आपको भावुक कर देगी और सोचने पर मजबूर करेगी कि भाईचारा कितना मजबूत हो सकता है।
गांव का नाम और लोकेशन
राजस्थान के नागौर जिले में बसा है ईनाणियां गांव।
नागौर शहर से सिर्फ 14 किलोमीटर दूर यह छोटा सा गांव आज भी सद्भाव की जीती-जागती तस्वीर है।
यहां की आबादी में 4400 से ज्यादा वोटर हैं, और सबकी पहचान एक ही – ईनाणियां।
सदियों पुरानी परंपरा की शुरुआत
यह अनोखा रिवाज 1358 ईस्वी से शुरू हुआ।
राजा शोभराज के बेटे इंदरसिंह ने 12 छोटे-छोटे खेड़ों को मिलाकर एक बड़ा गांव बसाया।
उन खेड़ों में अलग-अलग जातियां रहती थीं –
- कुम्हार
- मेघवाल
- सेन
- जाट
- राजपूत
- तेली
- महाजन
- ब्राह्मण
- गोस्वामी
अपराध और भेदभाव से लड़ने के लिए सबने फैसला किया कि वे एक साथ रहेंगे और एक ही सरनेम अपनाएंगे।
क्यों अपनाया एक ही सरनेम?
मुख्य वजह थी सामाजिक एकता।
जाति-पाति के भेद को मिटाने के लिए “ईनाणियां” सरनेम सबका साझा नाम बन गया।
हिंदू हो या मुस्लिम – सभी इसे लगाते हैं।
यह परंपरा अपराधियों से गांव की रक्षा करने और भाईचारे को मजबूत करने के लिए शुरू हुई।
आज भी यह गांव बिना किसी भेदभाव के जी रहा है।
धार्मिक मान्यता और बलिदान की कहानी
गांव की एक और दिल छू लेने वाली कहानी है हालुहरपाल सिंह की।
उन्होंने अपनी कुलदेवी दधिमती माता के लिए अपना शीश बलिदान कर दिया।
गायों को चोरों से बचाने की कोशिश में वे शहीद हो गए।
इसी वजह से गांव को “खेड़ा धणी” भी कहा जाता है।
यह कहानी गांववालों के लिए गर्व का विषय है, जो उन्हें और करीब लाती है।
आज का ईनाणियां गांव
आज इस गांव में सब मिलजुल कर रहते हैं।
न कोई जाति का झगड़ा, न भेदभाव – सिर्फ प्यार और सम्मान।
यह जगह हमें सिखाती है कि एकता से कितनी ताकत मिलती है।
अगर आप राजस्थान घूमने जा रहे हैं, तो ईनाणियां गांव जरूर जाएं।
यहां की हवा में भाईचारा महसूस होगा।
अंत में…
ईनाणियां गांव की यह कहानी हमें याद दिलाती है कि नाम से ज्यादा महत्वपूर्ण है दिलों का जुड़ाव।
क्या आप भी ऐसी एकता का सपना देखते हैं?
👉 कमेंट में बताएं और अगर कहानी पसंद आई हो तो शेयर करना न भूलें।